Blogspot - merikavitaye.blogspot.com - मेरी कविताएँ
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आनंद 5 Mar 2012 | 05:43 pm
जीवन पर्यंत, जन्मों-जन्मों की, खोज भिन्न एक सार, आनंद स्वरुप अंश जग सारा, आनंद जगत आधार | हास्य-रुदन, निद्रा-जगन, कुछ पाने कुछ खोने में, सूक्षम दृष्टि यदि डालें तो, आनंद छुपा हर होने में | आनंद ! मू...
पश्चिम या पूरब ? 27 Nov 2011 | 02:03 am
पश्चिम, पूरब की खीच तान, रच रहें द्वन्द, विचलित है प्राण | बाहर भागूँ, अन्दर जागूँ, है विकट प्रश्न, मुश्किल निदान | कभी मूल्य को रखकर कोने में, सुख पाऊ जग का होने में, घुटते अन्तर से व्यथित हुआ, कभी...
नदिया प्रीत निभाना जाने | 19 Jul 2011 | 08:49 pm
प्रेम तपिश से बने तरल, बढ़ चले, कठिन या राह सरल, थके नहीं, ना थमे कहीं, वो सागर से मिल जाना जाने, नदिया, प्रीत निभाना जाने | वो पली भले हों, गिरि शिखर, झुक चले हमेशा प्रेम डगर, सर्वस्व समर्पण हेतु वो...
बिखरे विरोध से क्या बनना ? 10 Jun 2011 | 11:38 pm
बाबा हों या फिर हों अन्ना बिखरे विरोध से क्या बनना ? जनता है, दल में बटी हुई, मुमकिन न, चेतना का जनना | जहाँ भ्रष्ट की, लाठी खाकर भी, जनता, बिभक्त-सुर गान करे, वहाँ जन-रक्षक, बन कर भक्षक, सत्ता का क्...
रिश्तों के रखाव में : गुरु के प्रति समर्पण 20 Apr 2011 | 02:39 am
रिश्तों के रखाव में सहजता का आभाव क्यु ? तत्क्षण दे दी थी गुरु दक्षिणा अंगूठे की एकलव्य ने द्रोण को | न सोचा, बस रख दिया अपना जीवन संचय कदमो में उनके, जिनसे न कुछ जाना था, जो गुरु थे नहीं, जिन्हें ब...
युक्ति-विजय 15 Mar 2011 | 01:28 am
मानव अहम् जनित मेधा से चाहे प्रकृति विजय है, दैवीय सत्ता वाम होत जब क्षण में होत प्रलय है | ईश्वर ने है रचा श्रृष्टि, जो जीवों का रखवाला सर्व समर्थ वो ईश-तुल्य, नर भूल गया मतवाला | निज उन्नति की चरम...
शांति अधिकारी 1 Mar 2011 | 07:39 pm
ज्यू अनेक नदियों का जल, उस अचल प्रतिष्ठावान जलधि, परिपूर्ण जलाजल से मिलकर, नहीं करते उसको तनिक विचल, त्यू ही सर्वकामना जगत की स्वतः मिले, न पर जो बुद्धि भटकती, है वही परम शांति अधिकारी, न वो हों जो का...
व्यक्त-अव्यक्त 7 Feb 2011 | 02:10 am
हे पार्थ, जीव अव्यक्त है जन्मपूर्व, वह व्यक्त जन्म से होता है और पुनः अव्यक्त निधनौपरांत, वह नित्य चक्र में होता है, हों शोकाकुल, उस हेतु जीव के, औचित्य कहाँ फिर होता है ? ============== अव्यक्तादीन...
माँ की गोद 23 Jan 2011 | 08:59 pm
माँ के सानिध्य से दूर शिशु को, ज्यूं उनकी गोद सताती है, त्यूं मातृभूमि की याद हृदय को बींध - बींध तड़पाती है | ज्यूं घोर शिशिर में दीप्त दिवाकर की किरणे हर्षाती है, त्यूं दूर बसे को जन्मभूमि की यादें...
अशेष 20 Jan 2011 | 07:24 pm
पा दिशा पवन से, गंध पुष्प का यहाँ - वहाँ करता प्रवेश, मगर सतोगुण सज्जन का, स्वतः बढे, चहु ओर अशेष |