Blogspot - shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com - शहरोज़ का रचना संसार
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बाज़ार ,रिश्ते और हम 11 Jul 2010 | 01:11 am
हसीं वादियों में इठलाते एक देश जहां स्याही सफेद हो जाया करती थी में जा जा देसी कव्वे इतराते देस में आकर इनका दर्प तीक्ष्ण हो जाया करता. श्रद्धा,विश्वास,नैतिकता, ईमानदारी,सत्य, अहिंसा,करुणा,वात्सल...
इस्लाम में कंडोम ! 7 Jul 2010 | 06:25 pm
चौंकिए मत ! मुझे कह लेने दीजिये कि इस्लाम परिवार कल्याण की अनुमति देता है.यानी कंडोम का इस्तेमाल इस सिलसिले में प्रतिबंधित नहीं है.पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के समय अज़्ल की खूब परम्परा रही है.यह अज़्ल कंडो...
आएश और आमश के लिए 27 Jun 2010 | 08:33 pm
यह हँसते हैं तो पौ फूटती है...गर अश्क उभर आए इन पलकों पर तो शिराएँ शिथिल हो जाती हैं , यकबयक ! इनकी खूब याद आ रही है, इन दिनों हमसे दूर हैं.छुट्टियों में नानी के घर.पिछले वर्ष लिखी कुछ कविता-नुमा पंक्...
वफ़ा के नाम पर तुम क्यों संभल कर बैठ गए.... 21 Jun 2010 | 01:03 pm
नीतीश के बहाने माँ जैसी कालजयी कृती के रचयिता गोर्की अक्सर कहा करते थे ,मित्रता ऐसी करनी चाहिए जो आगे चलकर बाधक न बने.लेकिन बहुधा लोग भूल जाते हैं.अब देखिये न राज्यसभा के लिए संपन्न कुछ सदस्यों के च...
ज़रुरत मानसिकता बदलने की 9 Mar 2010 | 05:30 am
हर तरफ जय महिला जय महिला..का शोर है.....मेरी महज़ इतनी सी इल्तिजा है कि सिर्फ कविता लिखना या शोर करना हम सबका न हो मक़सद..अपनी कोशिश हो कि सूरत बदलनी चाहिए.बहुत पहले लिखी एक कविता अपने संकलन उर्फ़ इति...
या हुसैन वा हुसैन...तस्लीम [A] कर या न कर 6 Mar 2010 | 08:01 pm
नींद ....अचानक कभी नहीं ...आई लेकिन इधर ऐसा ही हो रहा है...और जानते हैं..उसका समय कब होता है जब मैं खर्राटें लेने लगता हूँ..ठीक उसी वक़्त मुआज्ज़िन अज़ान पुकार रहा होता है या दूर मंदिर से शंख की आवाज़...
इन्द्रियों पर नियंत्रण सब से बड़ा जिहाद है. 28 Feb 2010 | 04:02 am
संतान की तरह सेवकों की सेवा करो.उन्हें वही खिलाओ जो तुम खाते हो. बदन से पसीना गिरने से पूर्व ही मजदूरों को उनकी मजदूरी दे दो. अनाथ और औरतों का हक मारना सब से बड़ा गुनाह है. तुम में सब से बेहतर वह है जो...
नेताओं का मिशन :कमीशन दर कमीशन 18 Feb 2010 | 03:44 am
हाल-बेहाल बैसाखी छोड़ , खड़ा हो मुसलमान तुष्टिकरण भाजपा नेतृत्व की सरकार हो तो हर ओर हिन्दू-हिन्दू !!और इसके बरक्स सरकार कांग्रेसी नेतृत्व की रही तो मुसलमानों का शोर है.हमें इस तरह के शोर की मुखालिफ़...
मेरे न रहने पर 28 Jan 2010 | 07:17 pm
मेरे न रहने पर खिड़की पर चाँद अटक जायेगा कमरे में रौशनी छिटका करेगी कुछ न कुछ चमक रहा होगा मेज़ पर बिखरे पन्ने फर्श पर खिलौने टिफिन तैयार कर स्त्री पति को सौंपेगी समय पर खा लेने की ताकीद के साथ हर प...
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 25 Jan 2010 | 07:15 am
-बिस्मिल अज़ीमाबादी! जी हाँ!! इस मशहूर क्रांतिकारी पंक्ति जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला दीं थीं.जिसे गुनगुनाते हुए अपना सर्वस्व होम करना देशवासी अपना फ़र्ज़ समझते थे.इस ग़ज़ल के रचयिता आप ही हैं.दरअसल...