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Latest News:
ये मानोगे तुम एक उम्र के बाद 17 Jun 2013 | 01:56 pm
ये मानोगे तुम एक उम्र के बाद ये दुनिया वो नहीं थी जो देखी तुमने बिन सूरज वाली आँखों की खुद की रौशनी में ये दुनिया वो नहीं थी जो सोची तुमने देकर के जोर दिल पे ये मानोगे तुम एक उम्र के बाद अगर नहीं ह...
वातायन सम्मान-2012: निदा फ़ाज़ली वातायन शिखर सम्मान एवं शोभित देसाई वातायन सम्मान 2012 से सम्मानित 9 Nov 2012 | 05:35 am
सर्दियों ने लन्दन को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है लेकिन 5 नवम्बर की शाम लन्दन के कुछ इलाकों ने ठण्ड की सत्ता के आगे समर्पण करने से इनकार कर रखा था। जी हाँ इस शाम के वक़्त में भी लन्दन की राजनीत...
क्षणिका 17 Oct 2012 | 03:47 pm
जाने किस जद्दोजेहद में मर गया परिंदा था सियासी ज़द में मर गया हुआ जो भी ऊँचा इस आसमाँ से अपने आप ही वो मद में मर गया मशाल
दो लघुकथाएं 9 Oct 2012 | 07:34 pm
1- चोर-सिपाही-वजीर-बादशाह चार पर्चियां बनाई गईं.. उन पर नाम लिखे गए चोर, सिपाही, वजीर और बादशाह उन्हें उछाला गया, चार हाथों ने एक-एक पर्ची उठाई. फिर उनमे से एक सीना चौड़ा करके गरजा -बोल-बोल, मेरा ...
मेरे प्रश्न 2 Oct 2012 | 05:25 pm
मेरे प्रश्न तुम्हारे विरोध में नहीं मगर अफ़सोस कि नहीं कर पाते हैं ये समर्थन भी ये प्रश्न हैं सिर्फ और सिर्फ खालिस प्रश्न जो खड़े हुए हैं जानने को सत्य ये खड़े हुए हैं धताने को उस हवा को जो अफवाह के ...
लघुकथाएं 1 Sep 2012 | 07:39 pm
१- अपराध का ग्राफ ''मारो स्सारे खों.. हाँथ-गोड़े तोड़ देओ.. अगाऊं सें ऐसी हिम्मत ना परे जाकी. एकई दिना में भूखो मरो जा रओ थो कमीन.. हमायेई खलिहान सें दाल चुरान चलो... जौन थार में खात हेगो उअई में छेद ...
लेखनी के जून २०१२ अंक में प्रकाशित दो लघुकथाएं.. 3 Jun 2012 | 04:39 pm
सहजीविता सफ़ेद कबूतर और कबूतरी के उस जोड़े ने दुनिया देख रखी थी और वो बहेलिया था कि उन्ही के घोंसले वाले पेड़ के नीचे अपने दाने,जाल और आस बिछाए था। कबूतर और कबूतरी ने एक दूसरे की तरफ देखा, मुस्कुराए ....
जिजीविषा (लघुकथा)- दीपक मशाल 28 May 2012 | 11:47 pm
एक-दो रोज की बात होती तो इतना क्लेश न होता लेकिन जब ये रोज की ही बात हो गई तो एक दिन बहूरानी भड़क गई. ''देखिये जी आप अपनी अम्मा से बात करिए जरा, उनकी सहेली बूढ़ी अम्मा जो रोज-रोज हमारे घर में रहने-खाने ...
Untitled 7 May 2012 | 03:30 am
M&D theme park Scotland tour
Untitled 27 Apr 2012 | 11:01 pm
सामाजिक सरोकारों की पत्रिका 'जनपक्ष' में प्रकाशित एक कविता- सबने किया बलात्कार जज साहब सबने किया बलात्कार जज साहब ये सबने किया मेरे साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है उनके नाम नहीं पता मुझे और चेहरे म....