Thelazy - thelazy.info
General Information:
Latest News:
Should Sanjay be pardoned? 29 Mar 2013 | 01:25 am
I never keep my promises, at least on this blog. I started writing a series on Sambhaavnaa and left it after one post. This has become a habit. I had decided that I would write a post today, but then ...
Mela (Fair): Stories from Sambhaavnaa-1 31 Dec 2012 | 12:58 pm
देखिये हम ज्यादा इकोनॉमिक्स नहीं समझते। बस इतना जानते हैं कि अगर घर में एक बच्चा भूखा होगा, एक की स्कूल की फीस भरनी होगी और एक को मेला देखना होगा, तो हम पहले क्या करेंगे। [Translation: Look, I do not ...
पायमाल रूहों का बाज़ार 29 Dec 2012 | 01:56 pm
पायमाल रूहों का बाज़ार एक भयानक,खूंखार,स्याह सा साया लावारिस मुनाफों की कब्र में लिपटा हुआ भों-भों करते लार टपकाते चीखते-चिल्लाते पार्लियमेंट स्ट्रीट के ये कुते उसको चाटते हुए खरीद-फरोख्त की शैतानी बो...
The Change Lies Within!! 23 Dec 2012 | 05:40 am
A few weeks ago I read Hardik Joshi’s (my school friend) status. A conductor said to a guy “Change cannot always be given to you. Sometimes you need to bring change.” What a wonderful statement. On th...
अनदेखा 14 Dec 2012 | 11:38 am
सोचना चाहो तो सितारो का कद क्या? देखना चाहो तो अंधेरो मे भी रोशनी का जशन है.. सोचना चाहो तो मुसीबत लहरो सी विशाल क्यो?? देखना चाहो तो मनोबल सा प्रचंड कुछ नही.. सोचना चाहो तो दुख हमपे ही क्यो?? देखना च...
Objectivity 4 Dec 2012 | 01:57 am
I am hungry, I am tired. And this should be an excuse for my mind to take over me, while I struggle with myself to work. I don't know much how these four months passed by, but I got to know myself a l...
वो ही आका तुम्हारे 8 Oct 2012 | 06:15 am
हमें खाने के लिए दो वक्त की रोटी ही चाहिए हमें तुम्हारी इन आलिशान इमारतों से क्या लेना -देना हमें सुकून मिलता हैं अपने जंगल अपनी जमीन अपने खेतों में हमें तुम्हारी इन आलिशान इमारतों ...
And I am back… with Kejriwal 3 Oct 2012 | 06:54 pm
Well, I have been away from the blog for a while now. No, I haven’t got a girlfriend who doesn’t like my blog. I started lots of drafts lately with hope that I can be back, but never completed any. I ...
चलो मेरे साथ.. 27 Sep 2012 | 03:53 pm
चलो आज कुछ बेवजह जीते हैं बेवजह चलते हैं बागीचे की सैर पर हँसते खिल खिलाते दूर इन वजहो से परे…. चलो आज कुछ बेवजह जीते हैं | चलो आज बेवजह मुस्कान बाँटते हैं मुरझाय फूलों मे भी जान डालतें हैं चलो आज आँस...
Toronto Diaries #2 25 Sep 2012 | 04:16 pm
I never complete these posts in one go. Perhaps, I should start writing the dates for different parts So, ignore the tense here, as “today” might have been three weeks earlier. We logically had fourth...